Monday, December 25, 2017

खतरे में

खून लगा है, दांत  खुले है
सुनो, तुम खतरे में हो  
"रास्ता आगे है ".

आग है, भूख है
समझो, तुम खतरे में हो
 "खाना टेबल पर है"

तैर रहा हूँ, लथपथ हूँ
मानो, तुम खतरे में हो
"गहरी साँसें लो"

तकलीफ है, तुम्हारा हूँ
जानू, मैं खतरे में हूँ
"मैं तुम्हारी हूँ "



Sunday, February 19, 2017

समस्या के पार

((नौजवान की ज़ुबान))

 नीचे फिसलन भरी
 फ़र्श आदर्श है
शक्ल दिखती है
झांको अगर
अक्ल दिखती है
आंको अगर
महँगी कितनी है
घर की चाबियां


(( कुछ सालों का अभिमान ))

मेरे तीस साल
तुम्हारे पच्चीस
लोन चुकाने में
घिन, घाम और
घमंड की बू
पूरे घराने में
खीजी कितनी हैं
पड़ोस की भाभियाँ


((कुछ सीलन, कुछ  सिलवटें ))

एक घर, कभी
चारदीवारी थी
अब दीवारें
ऊपर नीचे भी
पैरों की आहटें
नींद में रुकावटें
टंगी चाबुक हैं
छत की खामोशियाँ


(( हालात अब कैसे कटे? ))

बाल सफ़ेद
दांत कमज़ोर है 
मुश्किलों में पर वही
अस्सी वाला शोर है
कब नब्बे निकला
मैं चालीस
कब दो हज़ार 
मैं तीस पे बीस

 (( रद्दी का मुनाफ़ा ))

बस गिनती के घर 
बस गिनती के लोग
शाम को टीवी
सुबह को योग
थोड़ी सा खाना
थोड़े से रोग
समस्या के पार
काँटों की झाड़ियाँ

 






Sunday, February 12, 2017

अभिशप्त

राम अभिशप्त हैं
लाख लाख भक्त हैं
एक ही हनुमान हैं
जिनपे उनका ध्यान है
नाम मन से जपते जो
लंका में तपते जो
एक उनकी आज्ञा को
मान देते तप सा जो
सर्व उनकी इच्छा को
मानते परीक्षा जो
और उनकी चिंता को
क्षण क्षण है गिनता जो
बाकी तो विलुप्त हैं
राम अभिशप्त हैं


सीता अभिशप्त हैं
बाण-भेदी शब्द हैं
रखते हैं राम नाम 
रावणों के काम-धाम  
सरयू पर  भार है
अयोद्धया कारागार है
सीता को जिसने था
स्वयंवर में जीता
सीता की इच्छा तो
उनसे भी गुप्त है
आज वही संगिनी
संग उनके हैं नहीं
मृत्यु की शय्या पर 
जिनका नाम सत्य हैं
सीता अभिशप्त हैं


रघुवंशी मर्यादा
युगभर की क्रूरता
मरा मरा मरा मरा
वंश रघु घूरता !!

Thursday, January 7, 2016

पहली मुलाक़ात

इस पेड़ पे पत्ते नहीं,
मगर इसके नीचे
फिर भी बेवड़े; पत्ते खेलते हैं |

"मान गए , शहर आप ही का है |"


ये इलाका traders  का है
क़ानून हफ्ते पे चलता है
कबूतरबाज के नाज़ बहुत हैं
लोग भी नाराज़ बहुत हैं

दूर दूर मज़दूर हैं
दलता मूंग-मसूर है
बहुत गरीबी हैं यहाँ
गरीबों का ही कसूर है |

बचपन मेरा यहां
इसी मंदिर के अहाते
मैं और मेरे लफ़ूट यार
नीचे, नंगे थे नहाते

"पहली मुलाक़ात है, जनाब!
बातें भटक रही हैं "

गलती है, मगर गलतियों की लगनी ही है झड़ी
आप सामने, ज़िन्दगी सामने पड़ी ।

"रोक लीजिये अपनी घडी
  बातें बड़ी-बड़ी ।"

मेरे बारे में आपने कुछ पुछा ही नहीं
क्या करूँ , चुप रहूँ
और आपके rejection list में शामिल हो जाऊं

"कौन सी rejection list? "

चलिए, मतलब first round  तो clear  है |
इतना बता दें आपको फिर,

नहाने के बाद ठण्ड बड़ी लगती है
नदी का किनारा, हवा सुबह की

थोड़ी कभी कभी हम भी पी के
इसी पेड़ के नीचे अपने
जुए के रोएं सहला दिया करते थे |

"समझ गयी दरअसल, 
 आ गयी अक्ल
 ये बेवड़े आपके दोस्त हैं!
 वही जो आपको कोसते हैं| "

Saturday, December 12, 2015

Third Act

Act I

साल दो,
बाल दो,
हिले नहीं।

 job, no?

रौब, no?
दोनों ही
मिले नहीं !

दोस्त हैं
कोसते हैं
दम  नहीं
rum नहीं

क्या कहें
हमने कभी
कोशिशें ही
की नहीं
  

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Act II

उछले इरादों को
पिछले दरवाज़ों से
entry दिलाई थी
पाला नवाज़ों से

drum को करम माना
beat का current जाना
जंघा पे थप थप की
क्लासिक रिवाज़ों से

नींद को भी रोक लिया
फ़लसफ़े का झोंक लिया
दिल को खरोंच लिया
नश्तालिक़ सांचों से

prose में सवाल आये
धुन में जवाब सने
दिन के गुलाम सही
चाँद के नवाब बने

गाल पे हंसी उभरी
ताल के इशारों पे
हीरे नि मोती लुटे
कब्रों के ढाँचे से





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 Act  III

शाम की ऐसी ही है रफ़्तार

(च्च , च्च )

दो सड़कों के बीच है बच्चा
धुंआ खाता पीता है
लाल बत्ती , माल पत्ती
छिछला है, संजीदा है

(और इन्हे देखिये जनाब )

गर्दन झुका के, ना शीशे से झांके
गाडी में तशरीफ़, लैपटॉप पे आँखें
बहुत नाम  है, बहुत काम है
खाना भी खाना है, जाके नहाके


( आज कल की generation ... )

route गलत ले लिया, छूट रही picture
लड़की लड़ाका है , लड़का है लिच्चर
बहुत फ़िक्र है, बड़ा ज़िक्र है
बहुत अच्छी movie है, छोटे बजट पर


(इधर मैं)

मैं जियूं के ना जियूं, एक coke पियूं के ना  पियूं
ज़िम्मेदारियाँ घर बार की, क्यों भई क्यों
career  शुरू  हुआ है लेट,
ला भई छोटू , omlette
करना है अब खाली plate

"order तो अपनी मर्ज़ी करते हो ना ?"
आप कौन?
"एक दिमाग़ी character जो सह चुका..
bullshit  का  enough  वार...
देखो.. शाम हो चुकी..
पकड़ो थोड़ी रफ़्तार !"

omlette, beverage के  सामने
इस insipiration के जाम ने
चला दिया दिल पे car
चल छोटू, pack कर सब ये
lets  just  plunge  into the  war

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Final Act


जंगल वापस आया गोरिल्ला
नाम वही है, काम है ढीला
शहद पे थप्पड़ या फिर लक्कड़
याद मुझे बस शहर का शक्कर

अँधेरे में light न music
दीमकाबाद की घंटो चिक-चिक  
उबड़-खाबड़, सड़क न tower
no more roses , जंगली flower

(लेकिन.. )

लेकिन मेरा लेख तो यही है
शायद आखिरी टेक भी यही है
नदारद है नारद से लोग यहाँ पर
न खट्टी ढकारें, ना मीठा दही है

यही तो है सपना, flora-fauna है  अपना
बस लिखना है लिखना है लिखना है लिखना !
ना धन का प्रलोभन, न choice कोई है
आया गलत हूँ पर रस्ता सही है



"रस्ता सही है, ये कोशिश नयी है
बहुत सारी चीज़ों की ज़रुरत नहीं है"

जैसे?

"
शहर फिर से जाने की....
bathroom  नहाने की....
मुआं ज़माने की..
"
सही फरमाया हुज़ूर , मगर
आप कौन ?

"Third  Act  में आए थे.. भूल गए ?"

ओह.. माफ़ कीजिये।
रहने दें ! तारुफ़ की भी .... 
ज़रुरत नहीं है ! 



Saturday, August 28, 2010

पी गया

भारी भारी भिड गया
हल्के-हल्के
तिकड़म में
दिल आवाजों के दरिया में
फिर से
ripple बना रह गया
कुछ सोचा तराशा लहरों में
लकीरों के लिबास में
तिकोने तेवरों को सीधा गिना
चुप रहा
पी गया ख़ामोशी को ख़ामोशी से

Wednesday, April 7, 2010

दिखा Orion दिखी मुझे तुम

रात्री तिके मोनेर भितोरे
ओनेक गोभीर कोथा छिलो
काछा काछी पेलाम ना जे
आकेशेर ऐकटा कोना दिलो

बड़ी दिसम्बर की रातें हैं सुबह के सपने लम्बे चौड़े
हांफ हांफ कर आती हो तुम नज़र में मेरी दौड़े दौड़े

देखते पारताम सादा शुदु
खाली तोमार मुखेर जॉय
चोक खुले जे घुमाई आमी
तोमार मोतोन आमि निर्भय

धुली ऐसे बात धक्के में ही धड़कन हो गयी
खूब उछली प्यार टकली लम्बी गर्दन हो गयी

चला- चली जे ना करो
एक जागाय ते बोशे थाको
लागे निजेर सीटेर मोध्ये
चोक बूझिये घूमिये पोरेचो

आँखों तले की आधी बातें दी आसमान में क्यूँ उछाल
चुप्पी से भर डाला खुद को ऊपर तारों का जंजाल

तारा तारी कोरी आमि
सोंदये पूरो जेने बुझे
चार दिग तिके मोनेर संबल
तलाय कोथाय गैलो मेजे

मुझे पता है कहाँ रहोगी आने वाले सालों में
तुम्हे है भर रक्खा खुद में और आसमान के पाले में

भीड़-भाड़ बछोड़ भर
कोतो लोकी दैखा जाय
तुमार मोतोन हांसी पाई
तोमार मोतोन बौले बाय

दिखा Orion दिखी मुझे तुम ,सालों से तुम हिली नहीं हो
बूढी हो होकर चमकी हो , रोज़ उम्र में खिली कहीं हो

नाम दिएछे के तोमाके
ऐतो सुन्दोर जिमोन तुमि
चोक घूरिये कोथा बौलो
चोकेर दिगे घूरे भूमि

नाम तुम्हारा पकड़ के बैठे ,सात को बांधे धमकाया
अक्स गिराकर रात समंदर ,उत्तरार्ध भी दिखलाया


एरोकोमो होबे ऐकी शोमाय
बेधे राखबे आमाय तोमाय
एरी जोन्नो बुझी जानी
तोमार मोतोन दैखा जाय

रोज़ तुम्हारी तरफ पहुँचते ,इंच इंच सा सोच सोच कर
कहीं मिलेंगे आसमान में same pinch का सोच-सोच कर !!