Tuesday, November 11, 2008

जब बात तुमसे होती है

जब भी बात तुमसे होती है ...
सूरज ,चाँद ,बागीचे...
साले सब हरे हो जाते हैं ...

दोस्त सी बन जाती है
मेरी हर तकलीफ.. कुछ देर
सारे पता नहीं कहाँ खड़े हो जाते हैं..


बहुत प्यारी लगते हैं ..
अब भी ..
तुम्हारे अल्फाजों के बीच
जो तुम धीरे धीरे उभरती हो ..

बहुत कमज़ोर नज़रों का
बहाना करके
तुम्हारा चश्मा पहन लेता हूँ ..
कुछ देर रौशनी के करतब
देखता हूँ..
तुम्हारी मीठी-मीठी आंखों से

मेरी चादर जम गई है...
उठाकर फेंका है
मैंने गहराइयों के परदों को..
ताकि देख सकूं ...
मेरे बिना तुम कैसी हो
सामने तुम्हारा मैं..
वैसा जैसा
जैसा वैसे मैं हूँ ...
क्या तुम मेरे मैं -सी हो ..

मेरे सपनों ने
की है कितनी तरफदारी
तुम्हे लेकर अक्सर हो जाती है ..
सपनों से मारा-मारी ..

तुम बनी हो अब तक ..
sunlight से ..
सूरज से बेदखल ..

बनी रहो...मुझ तक
पहुँच ही जायेंगे
तुम्हारे मुस्कुराहटों के पल..

जब हाथ में मन्नतें लेकर
खुशी माँग के
हँस पडोगी ...
और अपने दाँतों पर
खुशी टांग के
हँस पडोगी ....!!!