Tuesday, December 4, 2007

कोयला रंगों से सस्ता है

कैनवास पे छोटे को..
कोयला रगड़ते देख लिया...
बड़े चित्रकार... रंगों से खेलने वाले..
उन्हें पालने वाले.. उन्हें झेलने वाले..

छोटे की कृति देख बोले..
कैनवास तुम्हारा...
दिमागी बातें तुम्हारी...
तुमने कोयले से उतारी..

चलो ठीक है... अच्छा है..
अब क्या इसे रंगों में पलट दोगे..
ताकि मुझे और बाबा को..
समझ में आये.. के ये खूबसूरत..
और भी हो सकती है...
करके देखो... समझ का खेल है..
मज़ा आएगा...

"तो क्या आप पेंटिंग मज़े के लिए करते हैं..?"
बड़े कसमसा से गए... बोले हाँ भाई...
और तुम...
"मैं... शायद खुद को समझने के लिए..."

थोड़े रूखे हो कर बोले..
भाई.. थोड़ा कलर-वलर डाल दिया करो..
बात मानो तुम बहुत अच्छा बनाते हो..
लोग तारीफ़ भी करेंगे...

"तारीफ़ करें ना करें क्या फर्क पड़ता है..
वैसे भी कोयला रंगों से सस्ता है..
और ख़ास बात ये..
की कैनवास भी घटिया quality का लग जाये..
तो भी फर्क नहीं पड़ता.."


तुम पागल हो...
"और पेंटर भी.."

खजाने की चाबी

दौड़ क्या है...? खजाने की चाबी है..
जब समझ जाता है..
फर्क फरिश्तों और इंसानों में..
एक बदनसीब आदमी..


चलते रहना थकावट से भरा..
और दौड़ते रहना पागलपन से..
मगर फिर भी..
दौड़ते रहे तो लगता है..
जल्दी पहुँच जायेंगे..
अपनी खुशी के ठिकानों पर..
गोल्डेन कलर की चाबी सी लगती है...
मगर ताले की तलाश तो कभी हम..
करते ही नहीं..

सुबह थी.. झूठी सी वो

और मिली जगह कोई...
जैसे हंसी और किरकिरी.
धुप में वो और भी..
छरहरी लगने लगी..

जो ना उठता इस सुबह तो..
ये सुबह दिखती नहीं..
खूबसूरत थी सुबह और..
खूब वो थी और भी...

देखता उसको रहा जब..
मैं लगाके टकटकी..
वो दबी आवाज़ में..
एक पेड़ सी लगने लगी..

जाग उट्ठी कल्पना से...
सांस भी लेने लगी...
वो मुझे खुद से अलग..
अपनी तरह लगने लगी..


सुबह थी.. झूठी सी वो..
शाम भी झूठी लगी..
वो सामने हंसने लगी...
बातें मेरी सुनकर सभी..

वो आत्मा से जब निकलकर
मेरी आत्मा में सो गयी..
सुबह थी.. झूठी सी वो..
शाम भी झूठी लगी..

इस वक़्त

इस वक़्त पहरा है मेरी आँखों पर..
देख तो लेती हैं..
समझ नहीं पाती..


इस वक़्त पहरा है मेरी बातों पर..
लिख तो लेती है.. कागजों पर..
बोल नहीं पाती..



इस वक़्त पहरा है मेरे हाथों पर..
दिल पे हाथ तो रख लेती हैं..
मगर बढ़ते नहीं उसकी तरफ..

जब समझोगी

जब समझोगी छोड़ा जिसे वो...
शब्दों से ऊपर था..
तो खुद चुप्पी साध लोगी..
महीनों तक...

हिम्म्मत तुम भी ना जुटा पाओगी...
चेहरा निखारने की...
खिली-खिली रहोगी..
कपड़ों के दायरों में.. अपने आप को..
सूंघ भी नहीं पाओगी....

छिछोरापन लगेंगी..
ये फिल्मों की कहानियां..

जब समझोगी मेरा प्यार क्या है...

ये प्यार कैसा

ये प्यार कैसा...
पहन सकता है बातें कोई...
शिकायतों को उम्मीद में भी..
बदल सकता है...

सहेज के रख सकता है..
समर्पण के संवाद कोई...

बीते की पहेली सुलझ नहीं पाती..
आगे उसके सिवा कोई दिखता नहीं..

बस गड़े-गडाए उमीदों के सहारे..
स्याही चबा रहा है...
कागज़ वजन से दिल को
कस के दबा रहा है...

वो ना दूर से ढोल की आवाज़ लगती है
ना ही पास से ही शहनाई की दुकान
वो तो बस लाल-पीला धागा लगती है
बरगद से बांधा हुआ अरमान

ये प्यार कैसा है धड़कने सुन्न करा रखी हैं
धड से गर्दन तक पूरा दिल का इलाका
तुमसे वजह दो वजह बिना बातें करता है
और चुप हो जाता है सर्दियों सा बांका

ये प्यार ऐसा है
बिना तुक से शुरू है
बिना तुक के ख़तम!!

कुछ तो अजीब है तुम में...

ये जो रोज़.. खाने की मेज़ पर...
धड़कन उभर आती है बाहर..
वक़्त लगता है समझने में..

सब्ज़िओं में स्वाद उसी का आता है..
"आज तुम्हारे लिए... chocolate cake लायी हूँ.."
"आज घर ज़रूर आना.. ममा ने invite किया है...
पनीर से काम चल जायेगा ना महाशय.?"
कैसे कैसे सवाल पूछती हो...

हर होटल, restaurent और ढाबे में..
तुम्हारी याद आती है..
अरे प्यार ऐसा थोड़े ही ना होता है..

प्यार में लोगों की भूख ख़त्म हो जाती है..
यहाँ double हो गयी है..
कुछ तो अजीब है तुम में...

तुम साबित क्या करना चाहते हो??

"तीन दिन की छुट्टी है... क्या करोगे..??"
घास चरने का प्लान है... join करोगी क्या..?
"हमें आपने गाय समझ रखा है..??"
अब क्या कहते उनसे... की हाँ भई..
दिल से तो तुम एक भोली-भली गाय ही हो...

ये अलग बात है
की सर पर सींग नहीं है..
और बाल भी इतने छोटे कटाकर रखे है की...
अगर सिंग होते तो दिख ही जाते...


"you know.. मुझे लगता है है की तुम ना
मुझसे थोडा डर-डरके बात करते हो..."
क्या कहता आजकल हवा ही ऐसी चल रही है..
दिल में हमेशा गुद-गुदी लगी रहती है...
ऊपर से गाय कितनी भी भोली-भाली हो..
एक uncertainty का factor तो बना ही रहता है..


फ़ोन पे बातें इतनी...
की अब तुम्हारी आवाज़ भी रंभाने सी लगती है..
और खैर पूजा तो तुम्हारी करता हूँ..

"तो तुम साबित क्या करना चाहते हो??"
यही के तुम गाय हो...:)

हम दोनों अजीब हैं.. agreed!!

चलो झगड़ लेते हैं...
आज फिर से..
बहुत दिनों से ,
सुबह खारी नहीं हुई....
तुम भी बैठे-बैठे बोरे हो रही हो....
और मैं फ़ालतू में
गहराईयों की तलाश कर रहा हूँ..

चलो समझते हैं मिलकर आज..
के हम दोनों सबसे अजीब क्यूँ हैं..
क्यूँ तुम एक normal प्रेमिका नहीं हो..
और मैं क्यूँ abnormal प्रेमी हूँ...


मैं तुम्हारी सारी बातें याद रखता हूँ..
"अच्छा.. तो बताओ मेरा नाम क्या है??"
आंसूं..... बरसात.. कुछ ऐसा ही है..
भीगी सी कोई अनुभूति जैसे...
"आय-हाय... कैसे relate कर लेते हो इन सबको
और इन सबसे मुझको??"


आसान है.... सुबह उठकर सबसे पहले
तुम्हे morning wish करता हूँ..
और फिर नींद तक तुम मुझे छोडती ही नहीं हो..

"मेरा तो पता नहीं..
पर तुम ज़रूर abnormal हो..!

ना-जाने इस पागल के चक्कर में कैसे पड़ गयी...?"

मैं बताता हूँ..
ऐसे जैसे... ऐसे जैसे...
बकरी कसाई के चक्कर में पड़ जाती है...!!!

"वाह-वाह क्या बात है जनाब..!!
जो तुमसे प्यार करे वो normal कैसे हो सकता है...
हाँ तो मिस्टर.. you were right..!
हम दोनों अजीब हैं.. agreed!!"

Some IMPORTANT lessons....

01. money is for EXCHANGE purpose only... it cant provide you something just for free....
u need to exchange something.... whether its your skill.... your honesty.. integrity..
your conscience.... it can just let you exchange.... NOTHING for free....

02.The way you smile and the frequency of it... sud in a way reflect your relationship with
yourself... anyways smile a lot...

03.People in general don't want conflicts... in their own mind.. most of the times...

04.We all want stimulus... something that can excite us... that can make us believe that we have
a purpose.... it helps...

05.What we can achieve are just opinions... not the truth.. it is SOMETHING very elusive..