चलो झगड़ लेते हैं...
आज फिर से..
बहुत दिनों से ,
सुबह खारी नहीं हुई....
तुम भी बैठे-बैठे बोरे हो रही हो....
और मैं फ़ालतू में
गहराईयों की तलाश कर रहा हूँ..
चलो समझते हैं मिलकर आज..
के हम दोनों सबसे अजीब क्यूँ हैं..
क्यूँ तुम एक normal प्रेमिका नहीं हो..
और मैं क्यूँ abnormal प्रेमी हूँ...
मैं तुम्हारी सारी बातें याद रखता हूँ..
"अच्छा.. तो बताओ मेरा नाम क्या है??"
आंसूं..... बरसात.. कुछ ऐसा ही है..
भीगी सी कोई अनुभूति जैसे...
"आय-हाय... कैसे relate कर लेते हो इन सबको
और इन सबसे मुझको??"
आसान है.... सुबह उठकर सबसे पहले
तुम्हे morning wish करता हूँ..
और फिर नींद तक तुम मुझे छोडती ही नहीं हो..
"मेरा तो पता नहीं..
पर तुम ज़रूर abnormal हो..!
ना-जाने इस पागल के चक्कर में कैसे पड़ गयी...?"
मैं बताता हूँ..
ऐसे जैसे... ऐसे जैसे...
बकरी कसाई के चक्कर में पड़ जाती है...!!!
"वाह-वाह क्या बात है जनाब..!!
जो तुमसे प्यार करे वो normal कैसे हो सकता है...
हाँ तो मिस्टर.. you were right..!
हम दोनों अजीब हैं.. agreed!!"
1 comment:
ths one is excellent...'
keep it up the gud wrk..
poems sabhi bahut achi likhi gayin hain yar..
kaisa likhta hai.. main nahi janta..
par acchi likhta hai.. ye janta hoon..
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