Thursday, November 12, 2009

GOOD-NIGHT!!!

आधी रात है बीत चुकी ,अब आधी के भी बाद;
मेरी "---", तेरी उबासी, करती है फरियाद।
बातें सुन ली, बातें कर ली, अब बातों की बात;
सो जा मुन्नी, डर जा थोडी, बहुत अँधेरी रात।
सुबह उठाना सूरज को, चमका दांतों को white
बस कहना है GOODNIGHT!!!

कभी फ़ोन पर गाड़ी टपके, कभी भीड़ की साज़;
कभी तुम्हारे heels की खट-खट, office की आवाज़
कभी तुम्हारे signals कच्चे, कभी फ़ोन डिस्चार्ज;
कभी तुम्हारे bill में प्रॉब्लम, और मेरा रिचार्ज।
बहुत दिनों से heavy था, दिल आज हुआ है light
I feel its a GOOD-night!!!


तुम्हे हूँ कहता "तुम हो पागल", कहती "चुप हो जा "!!
तुम्हे मैं कहता "नालायक हो", कहती "हाँ" "हाहा" !!
तुम्हे हूँ कहता "James Bond मैं " , कहती "हूंह अच्छा"
तुम्हे हूँ कहता "हुस्न--परी तुम", दिल में " हाँ हाँ हाँ"
पर खाने के सामान जो लाऊं, उसमें तुमको fight
बस रहने दो Good-Night!!!


चेहरे पर थी हंसी elastic, मुझे है इतना याद
चेहरा जो तुम लाती थी, सौ मन सो-सो के लाद।
तकलीफें ही दिल की खेती में पड़ती जो खाद
अब जो निकले गेहूं-मक्के , देखो उनके स्वाद
अगला दिन बैसाखी है, करना मुझको Invite
Lets Hope Its a GOOD-Night!!!!

बारिश कि मर्ज़ी

ये बारिश कि मर्ज़ी
जिसे चाहे छूले
किसे है पकड़ना ,
कहाँ रस्ता भूले !

वो अपने खिलौनों
को बादल है बकती
वो रस्ते छतों पर
जहाँ पैर रखती
वहीँ पिघली जाती है
थोडी झिझक में
सुबह नमीं में
पहाडों के चकमें।

ये पत्थर के ऊपर
ये पत्तों के ऊपर
भिखारी भी भीगे
भीगे पैरा-ट्रूपर
कहीं लोग तरसें
वहां ना ये बरसें
गरज के ये बोले
मेरे ऐसे तेवर!!


तेरे मेरे सर पर
ये बादल कि छतरी
मेरे बाल गीले
तेरी आँखें मठरी
पलक पर ये बूँदें
तू एक आँख मूंदे
फंसी तेरी टिप-टिप में
साँसों कि गठरी

ये बारिश कि मर्ज़ी
किसे दिल में भर ले
किसे रक्खे सूखा
किसे अपना कर ले
किसे धुप से अपनी
उलझन बताये
किसे चलते रहने की
टेंशन सुनाये

ये बारिश कि मर्ज़ी
बिजली के छाले
कहाँ खुल्ला रक्खे
कहाँ वो छुपा ले
वो हर एक दुआ
जो उसे थी बुलाती
वो उम्मीद का ख़ुद को
चेहरा बना ले!!!



Saturday, October 31, 2009

फिसला

ये रुकती हैं
दीवार पे बातें क्यूँ
आँखें टिकी
चेहरे पे रातें क्यूँ

ये घुट घुट के पत्थर
क्यूँ पानी में फिसला
थोड़ा टूट जाता
"मैं ठानी" में फिसला
ये अकडू अनाड़ी
टमाटर की गाड़ी
जो टपके तो पिचके
बिना आँख भिंचके
ये वादों की गड़बड़
ये मीठे से बड़बड़
"मैं जानूं हूँ सबकुछ"
नादानी में फिसला


कोई ना ये समझे
मेरे नखरे ढंग से
सभी की है चौखट
सभी बैठे तंग से
कोई कहता आलू
की फसलें उगाओ
कोई कहता मंडी
सुबह छान आओ
यही टोका-टाकी
ये बंगाली खांटी
ना समझे तराजू
पेशानी पे फिसला

ये रुकती है
दीवार पे बातें यों
मेरे साथ रहती है
आवाज़ ज्यों
मेरा वक्त खा लें
मेरी जाँ निकाले
हलक पे जो उतरे
तो माथे झुका लें
ये हकले की नज्में
बस उसकी समझ में
कहीं काश होता
वो लिखता वो गा ले

वो रहता था पाँचों
सी ऊँगली बराबर
कहीं कुछ ग़लत था
वो नम्बर या टावर
वो अपने खुराफात
की काली शक्लें
को ऐसा नहीं था
के घंटे भर ढक ले
वो वार्निंग पे वार्निंग
को ठुकराता साला
खुला रक्खा दिल को
थोड़ा लाल-काला
थोडी सी कबाडी
थोड़ा लोहा पिघला
वो अँधेरा कोहरा
वो धुंधला सा निकला

पुरानी कहानी
वही ज़िंदा रानी
मेरी सौ पहेली
हैरानी में फिसला !!!!

Tuesday, October 13, 2009

गलती पहाड़ की...!!!

कल रात से अंदेशा था
के आज कुछ भूलेंगे ज़रूर

"कल रात से कुरेदा था
आपको कितनी बार हुज़ूर! "

अनाप-शनाप तो बोलती ही रहती हो
उनके बीच काम का कुछ
पेश कर देती तो
सूखे गले और
चिपचिपे हाथों के साथ
पहाडों कि चढाई नहीं करते!


"और रात अगर
थोड़ा कम रोमांटिक होते
तो साहब
बेगुनाह परदों पर
अपने और तुम्हारे नाम की
बेवजह और बेतुकी कढाई नहीं करते !!"


बात को टालो मत
शाम तक ये तय हुआ था कि
बैग कि ज़िम्मेदारी तुम्हारी थी |

"हाँ ! मानती हूँ
पर मुझे वक्त पर उठाने की
बारी तुम्हारी थी !"

खूब.... तुम्हे उठाओ भी
साथ में काफ़ी भी पिलाओ
साथ में नाश्ते कि प्लेट में
रसगुल्ले सजा के लाओ!

मिजाज़ आपके नवाबी
और हम नामाकूल शराबी !!!

"पर अगर इतना वक्त लग रहा था
तो मुझे बता तो देते
मैं तो नींद में थी
और नींद में मैं बहरी होती हूँ


अच्छा.... अब समझी.!!!

तो तुम्हे मौका नहीं मिलता ना
मुझे झाड़ने का !"

वाह री दुनिया !
अरे जब जागती हो तो
आंखों से शराब नहीं
चाशनी पिलाती हो

जब सोती तो चेहरा
जान बुझकर
इतना मासूम बना लेती हो
के तुम्हे घंटों देखता रहूँ
और फ़िर कहती हो उठाया क्यूँ नहीं

"ओहो..... अब खूबसूरत हूँ
तो इसमें मेरी क्या गलती है ?"

अच्छा यानि कम-से -कम
शादी की सारी
ज़िम्मेदारी तो मानती हो ना ?

"बात को कहाँ से कहाँ ले गए तुम
मैंने कहा था क्या
ट्रेक्किंग पे रसगुल्ले लाने के लिए
वो भी पाव-भर रस के साथ "

नहीं... पर मैं तुम्हारे
थरथराते होठों को देखकर
इशारे समझ गया था !!

"अच्छा... और मेरे
बैंगनी कंठ को देखकर
पानी रखना याद नहीं पड़ा??"

अरे... बात का बतंगड़ मत बनाओ
कुछ ही देर में
ये तुम्हारे जुल्फों जैसे
घने बादलों से
पानी की बूँदें टपक पड़ेंगी
फ़िर दबा के पी लेना !!!

"वैसे मेरी प्यास तो
तुम्हारी बेईज्ज़ती करके ही बुझ गई!!"

मैंने तो चरस गांजा इंसुलिन
सबके शॉट ले लिए
तुम्हे धुप और बादलों के इस खेले में
देखता हूँ
तो बस लुढ़कते लुढ़कते बचता हूँ .. उफ़!!!

"पता है कभी कभी लगता है
तुम भी पहाडो से ही हो ..."

कैसे?

"घर से तुम्हे देखती हूँ
तो तुम
पिद्दे लगते हो
और जब
तुम पर आकर तुम्हे
देखती हूँ "

तो जंगली लगता हूँ ... क्यूँ ??

"नहीं...
तुम मेरे यकीन की तरह
वहीं हो

सालों से पहाडों को घेरने वाली
कालोनी बदल गई
मगर तुम वहीं हो !"

और....और आज भी
इंतज़ार करता हूँ
तुम कब कदम रखो
मेरे हजारों सालों में
मेरे साँस लेने के दिन ही कितने होते हैं?

"और मेरी नन्ही-मुन्नी ज़िन्दगी में
साँस देने के खुशनुमा दिन!!"

अच्छा अब ये तो बताओ
आज के ट्रेजेडी की ज़िम्मेदारी किस पे गई?

"चलो... गलती ना मेरी ना मेरे सरकार की
सारी गलती है इस प्यारे पहाड़ की !!"