Wednesday, January 28, 2009

ये तेरी आँखें न होती

ये तेरी आँखें होती
बस किनारे बाजुओं के
देखता मैं और तुमको
सोच लेता ,भांप जाता

जो समझता वो मैं अपने
पास रखता भूल जाता
पूछती बस तुम भी कुछ ना
ना मैं तुमको कुछ बताता

मैं नहीं कहता कभी कुछ
वक्त को कुछ ढूँढना था
बस तुम्हारी आंखों से वो
ढूंढ लेता ... चुप हो जाता

Monday, January 26, 2009

तुमने पढ़ा मुझे आज!!!

थके हारे हजारों सालों से थे
सबके फेफ़रों में भरते थे
अपनी बेशकीमती दुनिया ।
हवाओं ने जान लगाकर....
सबमें भर रखा जान को
ज़िन्दगी के आखिरी कदम तक...!!

क्या सबके लिए सोचते रहे??
हाँ..,जब ऊपर से आर्डर मिलता था
और तूफ़ान बन कर आते थे
तब भी आखिरी दम तक
हर बच्चे की साँस में ख़ुद को भरा रखते थे


महसूस करते थे वो भी
डूबते आदमी की तकलीफ
उसे भी ज़रूरत थी साँस की
फेफरे तरस रहे थे उसके
हवा के लिए..!!
मगर हवाओं के लिए किसी के दिल में
प्यार थोड़े ही ना था
बस एक ज़रूरत थी हवा..!!

फ़िर एक दिन अचानक
आँख खुली!
और हवाओं ने ज़ोर से साँस भरी
अपना रूप कभी उन्होंने निहारा ही नहीं था!!
लगा ऐसे के जैसे लफ्जों ने
पढ़ लिया हो शायर को..!
पिघला लोहा,
लोहार की शक्ल का हो गया..!!
सूखी फसलों ने..
ख़ुद को आग-वाग लगा के
मिटटी को दुलारा
खाद से सवारां
रंगों ने तालियाँ बजाई
कैनवस के लिए....


तुमने पढ़ा मुझे आज!!!


Tuesday, January 20, 2009

धूप-रौशनी-ज़िन्दगी

सुबह का वक़्त
उठा-पटक बहुत सारी
कौन किसपे कितना भारी??
रास्ते पे रौशनी के गट्ठे रखे हैं
उसपर काले-कलूटों की मारा-मारी!
और वो जो सबसे ऊपर हैं ना
दूर से फोटोग्राफी में मशगूल
अपने ही कैमरे में पकड़ लेता है..
मिटटी-शिट्टी,फूल-वूल !

और एक तुम भी हो
जो कम्बल से मुंह निकालकर.. सर्दियों में
गर्म रौशनी ढूंढती हो,
थोडी गर्माहट सूंघती हो !!

फिर दिन-भर अपने घर पर..
आला-दर्ज़े की धूप बन जाती हो !
और तुम्हारे रात भर सपनों से भरी-भरी पोटली भी
उठकर खिड़की के पास साँस लेती हैं !!

वक़्त बारीकी से तब खुरचता है,
तुम्हारे हाथों पे दिन भर की लकीरें...,
पिछली सारी खुशियों और तकलीफ़ों को सपाट करके..!!

ना जाने फ़िर से, कौन सी, कितनी लकीरें बांटता होगा
पर इनकी वजह से, धूप-रौशनी-ज़िन्दगी
इन सबके होने का मतलब
कोई पागल भी समझ जाता होगा...!!!!

Wednesday, January 7, 2009

बहरा

देर तक बातें तुम्हारी
इतनी बार सुनी है.
के अब जब याद आती हो..
बहरा हो जाता हूँ....

गूंजने लगते हैं
सारे मीठे-प्यारे अल्फाज़

सौ दिनों में ज़िन्दगी तुम्हारी
मेरे दिनों को हज़ार कर गयी..

तुम बोलती गयी इतना
के मेरे अंतर को
खूबसूरती से बहरा कर गयी!!