थारी सुन ली ..थारी सुन ली
पर उसकी ही बस सारी धुन ली
मिटटी -पत्थर , सोना -खद्दर
अपनी चद्दर आप ही चुन ली
हँसी ठिठोली , बारिश गाने
बरसातों में रोज़ नहाने
कई सुनहरी सुबह छोड़ी
बादल की बेकारी बुन ली
थारी सुन ली , थारी सुन ली
चमक -चमक के धमकाया भी
अंधेरों को भरमाया भी
भर -भर मन में आधी मूरत
एक पायल की मोटी सिल्ली
खूब खोल के भूखा रह -रह
नमक पसीने की मीठी तह
तीन टमाटर एक मिर्च के
साथ जलाई पेट की झिल्ली
रोक बाहरी , रोक सौ खड़ी
सोच के डब्बे की किरकिरी
उसको खाया उसको पिया
सन्यासी की छवि भी धर ली
थारी सुन ली , थारी सुन ली ....!