थके हारे हजारों सालों से थे।
सबके फेफ़रों में भरते थे
अपनी बेशकीमती दुनिया ।
हवाओं ने जान लगाकर....
सबमें भर रखा जान को
ज़िन्दगी के आखिरी कदम तक...!!
क्या सबके लिए सोचते रहे??
हाँ..,जब ऊपर से आर्डर मिलता था
और तूफ़ान बन कर आते थे
तब भी आखिरी दम तक
हर बच्चे की साँस में ख़ुद को भरा रखते थे
महसूस करते थे वो भी
डूबते आदमी की तकलीफ।
उसे भी ज़रूरत थी साँस की
फेफरे तरस रहे थे उसके
हवा के लिए..!!
मगर हवाओं के लिए किसी के दिल में
प्यार थोड़े ही ना था
बस एक ज़रूरत थी हवा..!!
फ़िर एक दिन अचानक
आँख खुली!
और हवाओं ने ज़ोर से साँस भरी
अपना रूप कभी उन्होंने निहारा ही नहीं था!!
लगा ऐसे के जैसे लफ्जों ने
पढ़ लिया हो शायर को..!
पिघला लोहा,
लोहार की शक्ल का हो गया..!!
सूखी फसलों ने..
ख़ुद को आग-वाग लगा के
मिटटी को दुलारा
खाद से सवारां
रंगों ने तालियाँ बजाई
कैनवस के लिए....
तुमने पढ़ा मुझे आज!!!