Sunday, September 16, 2007

स्वाहा

देव ने शिलाओं पर,
चित्त सा अंकित किया,
नाम तुम्हारे प्रणय-आस्था का;
काल भी संकुचित हो,
बैठा रहा,
ज्वार-तले.

धैर्य ने ऐश्वर्य के कंदराओं से कन्धों पर,
लाद दिया प्रेम -भार,
और वो व्यक्त करती रही आभार.

आया नहीं धैर्य.. बीते धैर्योचित युग सभी..
ऐश्वर्य निर्धन बनी बोझ लिए..
फिर रही..
हो गयी प्रेम में उसकी

आत्मा स्वाहा.. !!

मेंढक- कवि

मैं यहाँ.. वहां भी..
कूदता रहता हूँ.. मेंढक बनकर..
बारिश की उम्मीद में..
नाचने वाली मोरनी की उम्मीद में..

मुझे प्यार है उससे..

कैसे कहूं मैं बदशक्ल..

नाले में रहने वाला..
मच्छरों और कीट-पतंगों
पर ज़िन्दगी
गुजारता हूँ..
कैसे कहूं..

वहां कई मेंढकीयां है..

जो मुझे
खूबसूरत मानती है..

कभी-कभी
महसूस भी करा देती हैं..

मगर..
मैं कैसे मान लूं..

कैसे कहूं उससे..

अगर कह भी दूं तो क्या..
मैं तो मोर नहीं बन पाउंगा कभी
और ना ही वो मेंढकी..
चलो बन जाता हूँ फिर मैं एक कवि
उससे लिख लिख कर
महसूस करता रहूँगा..
अपने नाले में ही..

सांस रोककर.. दिल थामकर.!!

दिल की बातें...!

कैसे कहूं दिल की बातें..
क्या तुम सुनना भी चाहती हो..
आज फिर जाना है तुम्हे..
किसी के बर्थडे पर..
कल फिर जा रही हो.. छुट्टियों में घर अपने..
तम्मना ही रह जाती है हर बार..
सुनने कभी तुम खुद ही आते..
ये दिल की बातें...!

कभी कभी उतार देता हूँ..
कागज़ पर सीने को..
पर कमबख्त दिल..
उसमे उतर ही नहीं पाता..
क्योंकि तुम कागज़ पर उतर नहीं पाते..
बताऊँ कैसे तुम्हे ये सब..
दिल की बातें..

अब परसों की ही बात ले लो..
शाम को तुम्हारे रूम आया था..
मगर तुम्हारी चाची कभी..
अकेले तो छोड़े..
चिपक जाती है.. लेकर दुनायादारी की सारी बातें..
मगर तुम भी यार.. क्या क़र लेते..
कैसे उन्हें समझाते..
पहले खुद तो समझ जाओ..
ये दिल की बातें..