Sunday, November 23, 2008

आज मेरी शादी है


आज मेरी शादी है
बंध जाऊंगा तुमसे अभी
कुछ देर में

ऐसे के फिर तुम उम्र के
कम-से-कम
अगले चालीस-पचास साल
सिर्फ मेरे कन्धों को
सात जन्मों का
सहारा समझोगी


ऐसे के फिर तुम
कढाई में
जब भी शिकायतें तलोगी
आधी तो बस
मेरे नाम से नमकीन
हो जाएँगी


ऐसे के फिर तुम भूखी रहोगी

मेरे नाम कि थोड़ी
मन्नतें करोगी
मैं भी तुम्हारे
ख्यालों में लिपटा
बाज़ार से रसगुल्ले
उठाऊंगा..
और तुम्हे जी-भर करो
खिलाऊंगा..


ऐसे के फिर तुम..
वादा करोगी बिना कुछ कहे
के रात को मेरे बिना
खाना नहीं खाओगी कभी..
और बच्चों को प्यार से
खिला-पिलाकर
सुला दोगी

ऐसे के फिर तुम
मोटी हो जाओगी
मेरे सामने
बच्चों के daddy
कहकर पुकारोगी
और मैं
थका-हारा ऑफिस से लौटा
तुमपर झुंझलाऊंगा


ऐसे के फिर मैं
तुम्हे अपने से अलग
कभी सोच ही नहीं पाउँगा
मेरी ख़ुशी, और मेरी खीझ में
तुम एक बराबर सी लगोगी..
मेरी ज़िन्दगी में धंस जाओगी ऐसे
के मैं स्कूल से लेकर कॉलेज तक की
अपनी सारी नायिकाओं को
भूल जाऊंगा
और सबमें सिर्फ तुम्हारा चेहरा पाउँगा..!!!

समझा करो

जब वक्त तुम्हारा ओढ़ लेता
लबादा खामोशी का
मेरी साँस भी
थोडी सहमा करती है
समझा करो....!!

फिक्र मुझे तुम्हारी नहीं
तुम्हारे उन ज़ज्बातों की है
जिन्हें जानता हूँ ..
जो हर एक पल मरती हैं ..
समझा करो....

मैं कौन.. एक छाप हूँ
मिट जाऊंगा.. जैसे ही
दीवार धुल जायेगी .. ये आँखें
बारीश से थोड़ा डरती हैं ..
समझा करो..

बहुत साफ़-साफ़ लिखा है सब यहाँ
पढने में आसान भी है ...
बात समझ पर आके रुक जाती है ...
जो बेसिर-पैर के सवाल पूछा करती हैं ...
समझा करो ...

रखा करो ख़ुद को खुश ज़रा
थोड़ा दिल से हंसा करो
ख़ुद को ज़रा गौर से देखा करो ..
उम्र ऐसे ही थोडी थोडी बढ़ती है ...
समझा करो ...

यहाँ दिल से बहुत कुछ
चिपका रहता है ...
बात गहरी भी होती है
जिसे छुआ नहीं जा सकता है ..
समझा करो ..

मौत और ज़िन्दगी के बीच
का फासला भी
ख़ुद को
ज़िन्दगी नाम से बकता है ...
समझा करो ..

कभी-कभी धुंध में
बहुत ताकत होती है ...
सालों से सोया हुआ दिल
गाढे धुंध में जगता है ...
समझा करो ...

दिल की सबसे गहरी बात ...
तुम ही समझ जाओ काफ़ी है ...
क्या मैं क्या दुनिया सारी
कौन तुम्हे सबसे ज्यादा समझता है ...
समझा करो ...