Sunday, November 23, 2008

समझा करो

जब वक्त तुम्हारा ओढ़ लेता
लबादा खामोशी का
मेरी साँस भी
थोडी सहमा करती है
समझा करो....!!

फिक्र मुझे तुम्हारी नहीं
तुम्हारे उन ज़ज्बातों की है
जिन्हें जानता हूँ ..
जो हर एक पल मरती हैं ..
समझा करो....

मैं कौन.. एक छाप हूँ
मिट जाऊंगा.. जैसे ही
दीवार धुल जायेगी .. ये आँखें
बारीश से थोड़ा डरती हैं ..
समझा करो..

बहुत साफ़-साफ़ लिखा है सब यहाँ
पढने में आसान भी है ...
बात समझ पर आके रुक जाती है ...
जो बेसिर-पैर के सवाल पूछा करती हैं ...
समझा करो ...

रखा करो ख़ुद को खुश ज़रा
थोड़ा दिल से हंसा करो
ख़ुद को ज़रा गौर से देखा करो ..
उम्र ऐसे ही थोडी थोडी बढ़ती है ...
समझा करो ...

यहाँ दिल से बहुत कुछ
चिपका रहता है ...
बात गहरी भी होती है
जिसे छुआ नहीं जा सकता है ..
समझा करो ..

मौत और ज़िन्दगी के बीच
का फासला भी
ख़ुद को
ज़िन्दगी नाम से बकता है ...
समझा करो ..

कभी-कभी धुंध में
बहुत ताकत होती है ...
सालों से सोया हुआ दिल
गाढे धुंध में जगता है ...
समझा करो ...

दिल की सबसे गहरी बात ...
तुम ही समझ जाओ काफ़ी है ...
क्या मैं क्या दुनिया सारी
कौन तुम्हे सबसे ज्यादा समझता है ...
समझा करो ...

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