Sunday, February 19, 2017

समस्या के पार

((नौजवान की ज़ुबान))

 नीचे फिसलन भरी
 फ़र्श आदर्श है
शक्ल दिखती है
झांको अगर
अक्ल दिखती है
आंको अगर
महँगी कितनी है
घर की चाबियां


(( कुछ सालों का अभिमान ))

मेरे तीस साल
तुम्हारे पच्चीस
लोन चुकाने में
घिन, घाम और
घमंड की बू
पूरे घराने में
खीजी कितनी हैं
पड़ोस की भाभियाँ


((कुछ सीलन, कुछ  सिलवटें ))

एक घर, कभी
चारदीवारी थी
अब दीवारें
ऊपर नीचे भी
पैरों की आहटें
नींद में रुकावटें
टंगी चाबुक हैं
छत की खामोशियाँ


(( हालात अब कैसे कटे? ))

बाल सफ़ेद
दांत कमज़ोर है 
मुश्किलों में पर वही
अस्सी वाला शोर है
कब नब्बे निकला
मैं चालीस
कब दो हज़ार 
मैं तीस पे बीस

 (( रद्दी का मुनाफ़ा ))

बस गिनती के घर 
बस गिनती के लोग
शाम को टीवी
सुबह को योग
थोड़ी सा खाना
थोड़े से रोग
समस्या के पार
काँटों की झाड़ियाँ