Sunday, September 16, 2007

मेंढक- कवि

मैं यहाँ.. वहां भी..
कूदता रहता हूँ.. मेंढक बनकर..
बारिश की उम्मीद में..
नाचने वाली मोरनी की उम्मीद में..

मुझे प्यार है उससे..

कैसे कहूं मैं बदशक्ल..

नाले में रहने वाला..
मच्छरों और कीट-पतंगों
पर ज़िन्दगी
गुजारता हूँ..
कैसे कहूं..

वहां कई मेंढकीयां है..

जो मुझे
खूबसूरत मानती है..

कभी-कभी
महसूस भी करा देती हैं..

मगर..
मैं कैसे मान लूं..

कैसे कहूं उससे..

अगर कह भी दूं तो क्या..
मैं तो मोर नहीं बन पाउंगा कभी
और ना ही वो मेंढकी..
चलो बन जाता हूँ फिर मैं एक कवि
उससे लिख लिख कर
महसूस करता रहूँगा..
अपने नाले में ही..

सांस रोककर.. दिल थामकर.!!

2 comments:

Ojas said...

Aapke dil ka dard bayan ho raha hai kya yaha?

Ojas said...
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