देव ने शिलाओं पर,
चित्त सा अंकित किया,
नाम तुम्हारे प्रणय-आस्था का;
काल भी संकुचित हो,
बैठा रहा,
ज्वार-तले.
धैर्य ने ऐश्वर्य के कंदराओं से कन्धों पर,
लाद दिया प्रेम -भार,
और वो व्यक्त करती रही आभार.
आया नहीं धैर्य.. बीते धैर्योचित युग सभी..
ऐश्वर्य निर्धन बनी बोझ लिए..
फिर रही..
हो गयी प्रेम में उसकी
आत्मा स्वाहा.. !!
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