Tuesday, October 13, 2009

गलती पहाड़ की...!!!

कल रात से अंदेशा था
के आज कुछ भूलेंगे ज़रूर

"कल रात से कुरेदा था
आपको कितनी बार हुज़ूर! "

अनाप-शनाप तो बोलती ही रहती हो
उनके बीच काम का कुछ
पेश कर देती तो
सूखे गले और
चिपचिपे हाथों के साथ
पहाडों कि चढाई नहीं करते!


"और रात अगर
थोड़ा कम रोमांटिक होते
तो साहब
बेगुनाह परदों पर
अपने और तुम्हारे नाम की
बेवजह और बेतुकी कढाई नहीं करते !!"


बात को टालो मत
शाम तक ये तय हुआ था कि
बैग कि ज़िम्मेदारी तुम्हारी थी |

"हाँ ! मानती हूँ
पर मुझे वक्त पर उठाने की
बारी तुम्हारी थी !"

खूब.... तुम्हे उठाओ भी
साथ में काफ़ी भी पिलाओ
साथ में नाश्ते कि प्लेट में
रसगुल्ले सजा के लाओ!

मिजाज़ आपके नवाबी
और हम नामाकूल शराबी !!!

"पर अगर इतना वक्त लग रहा था
तो मुझे बता तो देते
मैं तो नींद में थी
और नींद में मैं बहरी होती हूँ


अच्छा.... अब समझी.!!!

तो तुम्हे मौका नहीं मिलता ना
मुझे झाड़ने का !"

वाह री दुनिया !
अरे जब जागती हो तो
आंखों से शराब नहीं
चाशनी पिलाती हो

जब सोती तो चेहरा
जान बुझकर
इतना मासूम बना लेती हो
के तुम्हे घंटों देखता रहूँ
और फ़िर कहती हो उठाया क्यूँ नहीं

"ओहो..... अब खूबसूरत हूँ
तो इसमें मेरी क्या गलती है ?"

अच्छा यानि कम-से -कम
शादी की सारी
ज़िम्मेदारी तो मानती हो ना ?

"बात को कहाँ से कहाँ ले गए तुम
मैंने कहा था क्या
ट्रेक्किंग पे रसगुल्ले लाने के लिए
वो भी पाव-भर रस के साथ "

नहीं... पर मैं तुम्हारे
थरथराते होठों को देखकर
इशारे समझ गया था !!

"अच्छा... और मेरे
बैंगनी कंठ को देखकर
पानी रखना याद नहीं पड़ा??"

अरे... बात का बतंगड़ मत बनाओ
कुछ ही देर में
ये तुम्हारे जुल्फों जैसे
घने बादलों से
पानी की बूँदें टपक पड़ेंगी
फ़िर दबा के पी लेना !!!

"वैसे मेरी प्यास तो
तुम्हारी बेईज्ज़ती करके ही बुझ गई!!"

मैंने तो चरस गांजा इंसुलिन
सबके शॉट ले लिए
तुम्हे धुप और बादलों के इस खेले में
देखता हूँ
तो बस लुढ़कते लुढ़कते बचता हूँ .. उफ़!!!

"पता है कभी कभी लगता है
तुम भी पहाडो से ही हो ..."

कैसे?

"घर से तुम्हे देखती हूँ
तो तुम
पिद्दे लगते हो
और जब
तुम पर आकर तुम्हे
देखती हूँ "

तो जंगली लगता हूँ ... क्यूँ ??

"नहीं...
तुम मेरे यकीन की तरह
वहीं हो

सालों से पहाडों को घेरने वाली
कालोनी बदल गई
मगर तुम वहीं हो !"

और....और आज भी
इंतज़ार करता हूँ
तुम कब कदम रखो
मेरे हजारों सालों में
मेरे साँस लेने के दिन ही कितने होते हैं?

"और मेरी नन्ही-मुन्नी ज़िन्दगी में
साँस देने के खुशनुमा दिन!!"

अच्छा अब ये तो बताओ
आज के ट्रेजेडी की ज़िम्मेदारी किस पे गई?

"चलो... गलती ना मेरी ना मेरे सरकार की
सारी गलती है इस प्यारे पहाड़ की !!"

1 comment:

Udan Tashtari said...

चलिए!!


सुन्दर चित्रण किया पूरे घटना क्रम का...