ये प्यार कैसा...
पहन सकता है बातें कोई...
शिकायतों को उम्मीद में भी..
बदल सकता है...
सहेज के रख सकता है..
समर्पण के संवाद कोई...
बीते की पहेली सुलझ नहीं पाती..
आगे उसके सिवा कोई दिखता नहीं..
बस गड़े-गडाए उमीदों के सहारे..
स्याही चबा रहा है...
कागज़ वजन से दिल को
कस के दबा रहा है...
वो ना दूर से ढोल की आवाज़ लगती है
ना ही पास से ही शहनाई की दुकान
वो तो बस लाल-पीला धागा लगती है
बरगद से बांधा हुआ अरमान
ये प्यार कैसा है धड़कने सुन्न करा रखी हैं
धड से गर्दन तक पूरा दिल का इलाका
तुमसे वजह दो वजह बिना बातें करता है
और चुप हो जाता है सर्दियों सा बांका
ये प्यार ऐसा है
बिना तुक से शुरू है
बिना तुक के ख़तम!!
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