Saturday, August 29, 2009

कौन कागज़ फाड़ता है ?

तुम्हे अपने सर से उतारकर
किताबों की चादर पर झाड़ता हूँ
मैं फ़िर काग़ज़ फाड़ता हूँ !

दो तीन दिन.... और
"तुम्हारे बात करने का लहजा
बदल जाता है!"

हफ्ते भर...... में
"रंगों का और खाने का
शौक बदल जाता है !"

महीने भर बाद
पिछली कहानियाँ फ़िर से....

" ....कमरे के कोनों में गाड़ते हो
तुम फ़िर कागज़ फाड़ते हो"



नाक पर अंगूठा और
"सर पर कलम की नोक"

सोच की नई नई तरकीब
आजमाता हूँ

"खचर-पचर लिखते हो कुछ देर फ़िर..."
तुम्हारा स्केच बनाता हूँ ..!
फ़िर....
"फ़िर ..."
खाना खाने जाता हूँ

"हाँ... फ़िर जब आते हो तो
पेट भर नए किरदार "
खुले घुमते हैं जो...
आइडियास के जंगल में..!!
उन्हें तुम डराती हो....!
" अच्छा"
जब ज़ोर से दहाड़ती हो...!
फ़िर तुम कागज़ फाड़ती हो !!

Saturday, August 15, 2009

इस प्यार के लिए कोई

कब तक
करता रहूँ यार...|
तुमसे
ये भारी भरकम प्यार|
साल बारह ,
दिन इक्यासी!
आस मेरी,
अब भी प्यासी!

कहाँ है,
(अब
कीबोर्ड पर
पटखनी
देकर),
लिखने में मज़ा वो?
जो आता था..
तुम्हे
बादलों पर
चढाकर....

अपनी हथेली दबाने में..!!!

तुम चाल चलती,
बातों में लपेटकर,
कुछ मील हज़ार..!
और मैं समझता था..
तुम पास रही हो..!!

इत्रों की फैक्टरियों में..,
अपनी साँसों की ब्रैंडिंग की.. !
तुम उठते ही
बिना
कुछ किए .....:)
अपने होंठ सुंघा देती थी..
और मैं बेईमान
मैं उसे प्यार समझता था..!!

अब
भी माल,
कुछ

बढ़िया लगता है
पर तुम्हारा
"इमोशनली ड्रेनिंग चेहरा"
-साला...!!
खींच लेता है
हाथ अपने,
मेरे कोम्फोर्ट ज़ोन से,
छोड़ नहीं सकता तुम्हें..!!!

साल बारह दिन बिरासी
कल भी सब
यही रीपीट होगा
इस प्यार के लिए कोई
डाईटिंग ऑप्शन नहीं है!!!