Act I
साल दो,
बाल दो,
हिले नहीं।
job, no?
रौब, no?
दोनों ही
मिले नहीं !
दोस्त हैं
कोसते हैं
दम नहीं
rum नहीं
क्या कहें
हमने कभी
कोशिशें ही
की नहीं
-------------------------------------------------------------------
Act II
उछले इरादों को
पिछले दरवाज़ों से
entry दिलाई थी
पाला नवाज़ों से
drum को करम माना
beat का current जाना
जंघा पे थप थप की
क्लासिक रिवाज़ों से
नींद को भी रोक लिया
फ़लसफ़े का झोंक लिया
दिल को खरोंच लिया
नश्तालिक़ सांचों से
prose में सवाल आये
धुन में जवाब सने
दिन के गुलाम सही
चाँद के नवाब बने
गाल पे हंसी उभरी
ताल के इशारों पे
हीरे नि मोती लुटे
कब्रों के ढाँचे से
-------------------------------------------------------------------
Act III
शाम की ऐसी ही है रफ़्तार
(च्च , च्च )
दो सड़कों के बीच है बच्चा
धुंआ खाता पीता है
लाल बत्ती , माल पत्ती
छिछला है, संजीदा है
(और इन्हे देखिये जनाब )
गर्दन झुका के, ना शीशे से झांके
गाडी में तशरीफ़, लैपटॉप पे आँखें
बहुत नाम है, बहुत काम है
खाना भी खाना है, जाके नहाके
( आज कल की generation ... )
route गलत ले लिया, छूट रही picture
लड़की लड़ाका है , लड़का है लिच्चर
बहुत फ़िक्र है, बड़ा ज़िक्र है
बहुत अच्छी movie है, छोटे बजट पर
(इधर मैं)
मैं जियूं के ना जियूं, एक coke पियूं के ना पियूं
ज़िम्मेदारियाँ घर बार की, क्यों भई क्यों
career शुरू हुआ है लेट,
ला भई छोटू , omlette
करना है अब खाली plate
"order तो अपनी मर्ज़ी करते हो ना ?"
आप कौन?
"एक दिमाग़ी character जो सह चुका..
bullshit का enough वार...
देखो.. शाम हो चुकी..
पकड़ो थोड़ी रफ़्तार !"
omlette, beverage के सामने
इस insipiration के जाम ने
चला दिया दिल पे car
चल छोटू, pack कर सब ये
lets just plunge into the war
-------------------------------------------------------------------
Final Act
जंगल वापस आया गोरिल्ला
नाम वही है, काम है ढीला
शहद पे थप्पड़ या फिर लक्कड़
याद मुझे बस शहर का शक्कर
अँधेरे में light न music
दीमकाबाद की घंटो चिक-चिक
उबड़-खाबड़, सड़क न tower
no more roses , जंगली flower
(लेकिन.. )
लेकिन मेरा लेख तो यही है
शायद आखिरी टेक भी यही है
नदारद है नारद से लोग यहाँ पर
न खट्टी ढकारें, ना मीठा दही है
यही तो है सपना, flora-fauna है अपना
बस लिखना है लिखना है लिखना है लिखना !
ना धन का प्रलोभन, न choice कोई है
आया गलत हूँ पर रस्ता सही है
"रस्ता सही है, ये कोशिश नयी है
बहुत सारी चीज़ों की ज़रुरत नहीं है"
जैसे?
"
शहर फिर से जाने की....
bathroom नहाने की....
मुआं ज़माने की..
"
सही फरमाया हुज़ूर , मगर
आप कौन ?
"Third Act में आए थे.. भूल गए ?"
ओह.. माफ़ कीजिये।
रहने दें ! तारुफ़ की भी ....
ज़रुरत नहीं है !
साल दो,
बाल दो,
हिले नहीं।
job, no?
रौब, no?
दोनों ही
मिले नहीं !
दोस्त हैं
कोसते हैं
दम नहीं
rum नहीं
क्या कहें
हमने कभी
कोशिशें ही
की नहीं
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Act II
उछले इरादों को
पिछले दरवाज़ों से
entry दिलाई थी
पाला नवाज़ों से
drum को करम माना
beat का current जाना
जंघा पे थप थप की
क्लासिक रिवाज़ों से
नींद को भी रोक लिया
फ़लसफ़े का झोंक लिया
दिल को खरोंच लिया
नश्तालिक़ सांचों से
prose में सवाल आये
धुन में जवाब सने
दिन के गुलाम सही
चाँद के नवाब बने
गाल पे हंसी उभरी
ताल के इशारों पे
हीरे नि मोती लुटे
कब्रों के ढाँचे से
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Act III
शाम की ऐसी ही है रफ़्तार
(च्च , च्च )
दो सड़कों के बीच है बच्चा
धुंआ खाता पीता है
लाल बत्ती , माल पत्ती
छिछला है, संजीदा है
(और इन्हे देखिये जनाब )
गर्दन झुका के, ना शीशे से झांके
गाडी में तशरीफ़, लैपटॉप पे आँखें
बहुत नाम है, बहुत काम है
खाना भी खाना है, जाके नहाके
( आज कल की generation ... )
route गलत ले लिया, छूट रही picture
लड़की लड़ाका है , लड़का है लिच्चर
बहुत फ़िक्र है, बड़ा ज़िक्र है
बहुत अच्छी movie है, छोटे बजट पर
(इधर मैं)
मैं जियूं के ना जियूं, एक coke पियूं के ना पियूं
ज़िम्मेदारियाँ घर बार की, क्यों भई क्यों
career शुरू हुआ है लेट,
ला भई छोटू , omlette
करना है अब खाली plate
"order तो अपनी मर्ज़ी करते हो ना ?"
आप कौन?
"एक दिमाग़ी character जो सह चुका..
bullshit का enough वार...
देखो.. शाम हो चुकी..
पकड़ो थोड़ी रफ़्तार !"
omlette, beverage के सामने
इस insipiration के जाम ने
चला दिया दिल पे car
चल छोटू, pack कर सब ये
lets just plunge into the war
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Final Act
जंगल वापस आया गोरिल्ला
नाम वही है, काम है ढीला
शहद पे थप्पड़ या फिर लक्कड़
याद मुझे बस शहर का शक्कर
अँधेरे में light न music
दीमकाबाद की घंटो चिक-चिक
उबड़-खाबड़, सड़क न tower
no more roses , जंगली flower
(लेकिन.. )
लेकिन मेरा लेख तो यही है
शायद आखिरी टेक भी यही है
नदारद है नारद से लोग यहाँ पर
न खट्टी ढकारें, ना मीठा दही है
यही तो है सपना, flora-fauna है अपना
बस लिखना है लिखना है लिखना है लिखना !
ना धन का प्रलोभन, न choice कोई है
आया गलत हूँ पर रस्ता सही है
"रस्ता सही है, ये कोशिश नयी है
बहुत सारी चीज़ों की ज़रुरत नहीं है"
जैसे?
"
शहर फिर से जाने की....
bathroom नहाने की....
मुआं ज़माने की..
"
सही फरमाया हुज़ूर , मगर
आप कौन ?
"Third Act में आए थे.. भूल गए ?"
ओह.. माफ़ कीजिये।
रहने दें ! तारुफ़ की भी ....
ज़रुरत नहीं है !