कब तक
करता रहूँ यार...|
तुमसे
ये भारी भरकम प्यार|
साल बारह ,
दिन इक्यासी!
आस मेरी,
अब भी प्यासी!
कहाँ है,
(अब कीबोर्ड पर
पटखनी देकर),
लिखने में मज़ा वो?
जो आता था..
तुम्हे बादलों पर
चढाकर....
अपनी हथेली दबाने में..!!!
तुम चाल चलती,
बातों में लपेटकर,
कुछ मील हज़ार..!
और मैं समझता था..
तुम पास आ रही हो..!!
इत्रों की फैक्टरियों में..,
अपनी साँसों की ब्रैंडिंग की.. !
तुम उठते ही
बिना कुछ किए .....:)
अपने होंठ सुंघा देती थी..
और मैं बेईमान
मैं उसे प्यार समझता था..!!
अब भी माल,
कुछ
बढ़िया लगता है
पर तुम्हारा
"इमोशनली ड्रेनिंग चेहरा"
-साला...!!
खींच लेता है
हाथ अपने,
मेरे कोम्फोर्ट ज़ोन से,
छोड़ नहीं सकता तुम्हें..!!!
साल बारह दिन बिरासी
कल भी सब
यही रीपीट होगा
इस प्यार के लिए कोई
डाईटिंग ऑप्शन नहीं है!!!
1 comment:
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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