रोक खुदको
तू भी पागल हो जायेगा
"रोक खुद को
तू भी पागल हो जाएगी"
ये क्या बोलती हो खुद से
मैं कहीं नाराज़ हो गया तो??
"अब क्या फर्क पड़ता है
तुम खुद भी तो इतने महत्वकांक्षी हो?"
पर तुम तो मेरी मीनाक्षी हो
बताया तो था मैंने तुम्हे
तुम्हारे सबसे करीब हूँ
शायद अपने जज्बातों में तुमसे
ज़रा सा गरीब हूँ
"भूल जाओ सब... किसे याद रहता है ये सब
मुझे है मगर..!!"
तो फिर बोलती नहीं क्यूँ..
ये नाटक पागलपन का
अब वक़्त कितना कम बचा है
अरे बच्ची... कब सोचोगी
"आजाद सा महसूस नहीं करते क्या
अब तुम खुद को?"
करता हूँ
झूठ क्यूँ बोलूं...
पर तुमने बाँध रखा था
तो बहुत अलग था मैं
"कुछ आएगा तो कुछ जायेगा भी.."
पर तुम सिर्फ कुछ तो नहीं थी
और मैं क्या सिर्फ कुछ दिनों
का खिलौना था
"कैसे ख़तम करें अब इसे??
सुझा दो तुम ही कुछ"
बात मत करो मुझसे
और दोहराती रहो बार-बार
"क्या??"
येही के
लहर उड़ा ले गयी
अपने मोती...
"..वरना मैं तुम्हारी होती..!!!"
Friday, July 25, 2008
भूख
असर है तुम्हारी बातों का
आज भी इतना
रह-रहकर पैदल पकड़ लेते हैं
मुझे अक्सर हर सुबह
बहुत दिनों से सोचा है के
अब तुम्हारे बारें में कुछ
सोचूंगा नहीं
और तुम्हारे बारें में हफ्ते भर से
कुछ ख़ास सोचा भी नहीं
फिर भी मूड कभी कभी
ख़राब हो जाता है
तुम वादे क्यूँ करती हो
क्यूँ इतना झूठ ओढ़ रखा है
किसकी ज़रूरतों को पूरा करो रही हो???
भूखा यहाँ हर कोई है
और गौर से देखो तो कोई भी नहीं
क्यूँकी भूख क्या है
आज तक कोई समझा भी नहीं है
सिर्फ पेट तक..
या उसके आसपास इकट्ठी नहीं है
सर पर भरी भरकम ताज भी नहीं है
दिल पे पड़ा हुआ पुराना बोझ भी नहीं है
भूख तो ज़रिया है
शायद खुद को
जिंदा रखने की एक सफल व्यवस्था!!
आज भी इतना
रह-रहकर पैदल पकड़ लेते हैं
मुझे अक्सर हर सुबह
बहुत दिनों से सोचा है के
अब तुम्हारे बारें में कुछ
सोचूंगा नहीं
और तुम्हारे बारें में हफ्ते भर से
कुछ ख़ास सोचा भी नहीं
फिर भी मूड कभी कभी
ख़राब हो जाता है
तुम वादे क्यूँ करती हो
क्यूँ इतना झूठ ओढ़ रखा है
किसकी ज़रूरतों को पूरा करो रही हो???
भूखा यहाँ हर कोई है
और गौर से देखो तो कोई भी नहीं
क्यूँकी भूख क्या है
आज तक कोई समझा भी नहीं है
सिर्फ पेट तक..
या उसके आसपास इकट्ठी नहीं है
सर पर भरी भरकम ताज भी नहीं है
दिल पे पड़ा हुआ पुराना बोझ भी नहीं है
भूख तो ज़रिया है
शायद खुद को
जिंदा रखने की एक सफल व्यवस्था!!
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