असर है तुम्हारी बातों का
आज भी इतना
रह-रहकर पैदल पकड़ लेते हैं
मुझे अक्सर हर सुबह
बहुत दिनों से सोचा है के
अब तुम्हारे बारें में कुछ
सोचूंगा नहीं
और तुम्हारे बारें में हफ्ते भर से
कुछ ख़ास सोचा भी नहीं
फिर भी मूड कभी कभी
ख़राब हो जाता है
तुम वादे क्यूँ करती हो
क्यूँ इतना झूठ ओढ़ रखा है
किसकी ज़रूरतों को पूरा करो रही हो???
भूखा यहाँ हर कोई है
और गौर से देखो तो कोई भी नहीं
क्यूँकी भूख क्या है
आज तक कोई समझा भी नहीं है
सिर्फ पेट तक..
या उसके आसपास इकट्ठी नहीं है
सर पर भरी भरकम ताज भी नहीं है
दिल पे पड़ा हुआ पुराना बोझ भी नहीं है
भूख तो ज़रिया है
शायद खुद को
जिंदा रखने की एक सफल व्यवस्था!!
No comments:
Post a Comment