रोक खुदको
तू भी पागल हो जायेगा
"रोक खुद को
तू भी पागल हो जाएगी"
ये क्या बोलती हो खुद से
मैं कहीं नाराज़ हो गया तो??
"अब क्या फर्क पड़ता है
तुम खुद भी तो इतने महत्वकांक्षी हो?"
पर तुम तो मेरी मीनाक्षी हो
बताया तो था मैंने तुम्हे
तुम्हारे सबसे करीब हूँ
शायद अपने जज्बातों में तुमसे
ज़रा सा गरीब हूँ
"भूल जाओ सब... किसे याद रहता है ये सब
मुझे है मगर..!!"
तो फिर बोलती नहीं क्यूँ..
ये नाटक पागलपन का
अब वक़्त कितना कम बचा है
अरे बच्ची... कब सोचोगी
"आजाद सा महसूस नहीं करते क्या
अब तुम खुद को?"
करता हूँ
झूठ क्यूँ बोलूं...
पर तुमने बाँध रखा था
तो बहुत अलग था मैं
"कुछ आएगा तो कुछ जायेगा भी.."
पर तुम सिर्फ कुछ तो नहीं थी
और मैं क्या सिर्फ कुछ दिनों
का खिलौना था
"कैसे ख़तम करें अब इसे??
सुझा दो तुम ही कुछ"
बात मत करो मुझसे
और दोहराती रहो बार-बार
"क्या??"
येही के
लहर उड़ा ले गयी
अपने मोती...
"..वरना मैं तुम्हारी होती..!!!"
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