याद है तुम्हे...
तुम्हारे नाम से
पूरी कॉपी भर दिया करता था....
"ह्म्म्म.... पागल तो तुम बचपन से ही थे.."
और तुम मेरी कविता... जब मैं तेरह साल का था..
और तुम...
"तुमसे उम्र में पूरे एक सौ एग्यारह दिन बड़ी.."
और height में पूरे ग्यारह पॉइंट एक centimeter छोटी...!!!
"ह्म्म्म... याददाश्त अच्छी है...."
तुम अच्छी हो.... याद्दाश्त तो normal है...
मेरी तरह...
"याद्दाश्त के बहाने अपनी तारीफ मत करो...
मैं दृष्टि शर्मा... जो कि एक डॉक्टर हूँ...
खुदा को हाज़िर-नाज़िर मानकर...
वगरह-वगरह को वगरह-वगरह मानकर...
एलान करती हूँ...."
के वेद महाशय पागल हैं....
"अरे ये normal statement कैसे दे दिया patient ने...
diagnosis में गलती तो नहीं हो गयी.."
गलती तो हुई है.... patient ने गलत डॉक्टर चुन लिया...
"चलो ये तो मान लिया
के जनाब हैं तो patient ही...."
दिल का मरीज़ हूँ... और आँखों का भी
"ये फिल्मों वालें dialogue ना मारा करो...
बुरा लगता है.."
क्यूँ..
"झूठे लगने लगते हो..."
अरे... तो सच भी तो सुना होगा कभी...
वो सब भूल जाती हो क्या?
"याद है... मुझे..
जब तुमने कहा था....
तुम मेरा आकाश हो... आकाश का एक कोना हो...
तुममें अपने इश्वर को देखता हूँ मैं...
सुनता हूँ तुम में अपनी प्रथ्नाओं को..."
लेकिन सब तो इंग्लिश में कहा था ना...!!!
"नहीं इंग्लिश में सब बनावटी लगता है...."
अरे... अजीब हो...
"अजीब तो हूँ ही....
तुम्हे तब समझ ही नहीं पायी....
मुस्कुराती रही तुम्हारी सारी बातों पे..."
पर खींच के ले ही आया ना
तुम्हे...
और तुम भी आखिर बन ही गयी
मेरा आसमान.. और etcetra etcetra...!!
"और तुम मेरे career पे एक बंगाली धब्बा..."
और तुम मेरी ज़िन्दगी में...
मेरी छत..मेरा आसमान..
"मेरी मेहँदी.. और
मेहँदी के नीचे दबी..
मेरी जीवन-रेखा..."
मेरा वक़्त... मेरा सच...
"मेरा यह.. मेरा वोह...
मेरी mbbs... मेरी पढाई.."
मेरी अक्ल... तुम्हारी शक्ल
और शक्ल से बाहर तुम...
मेरी सिर्फ मेरी,
और शक्ल के अंदर मैं तुम्हारा
सिर्फ तुम्हारा!!!!!
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