Sunday, February 12, 2017

अभिशप्त

राम अभिशप्त हैं
लाख लाख भक्त हैं
एक ही हनुमान हैं
जिनपे उनका ध्यान है
नाम मन से जपते जो
लंका में तपते जो
एक उनकी आज्ञा को
मान देते तप सा जो
सर्व उनकी इच्छा को
मानते परीक्षा जो
और उनकी चिंता को
क्षण क्षण है गिनता जो
बाकी तो विलुप्त हैं
राम अभिशप्त हैं


सीता अभिशप्त हैं
बाण-भेदी शब्द हैं
रखते हैं राम नाम 
रावणों के काम-धाम  
सरयू पर  भार है
अयोद्धया कारागार है
सीता को जिसने था
स्वयंवर में जीता
सीता की इच्छा तो
उनसे भी गुप्त है
आज वही संगिनी
संग उनके हैं नहीं
मृत्यु की शय्या पर 
जिनका नाम सत्य हैं
सीता अभिशप्त हैं


रघुवंशी मर्यादा
युगभर की क्रूरता
मरा मरा मरा मरा
वंश रघु घूरता !!

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