Sunday, September 16, 2007

दिल की बातें...!

कैसे कहूं दिल की बातें..
क्या तुम सुनना भी चाहती हो..
आज फिर जाना है तुम्हे..
किसी के बर्थडे पर..
कल फिर जा रही हो.. छुट्टियों में घर अपने..
तम्मना ही रह जाती है हर बार..
सुनने कभी तुम खुद ही आते..
ये दिल की बातें...!

कभी कभी उतार देता हूँ..
कागज़ पर सीने को..
पर कमबख्त दिल..
उसमे उतर ही नहीं पाता..
क्योंकि तुम कागज़ पर उतर नहीं पाते..
बताऊँ कैसे तुम्हे ये सब..
दिल की बातें..

अब परसों की ही बात ले लो..
शाम को तुम्हारे रूम आया था..
मगर तुम्हारी चाची कभी..
अकेले तो छोड़े..
चिपक जाती है.. लेकर दुनायादारी की सारी बातें..
मगर तुम भी यार.. क्या क़र लेते..
कैसे उन्हें समझाते..
पहले खुद तो समझ जाओ..
ये दिल की बातें..

2 comments:

harsh said...

nice poem on love....really good one for the people who dont have a good vocab....but still want to know the "Dil ki baatein.."

Ojas said...

good one :)