Saturday, September 15, 2007

बस थोडा सा प्यार

घिरे रहते.. सपनो में..
दरवाज़े के बाहर पड़ा अखबार..
और दूध की bottle..
कर रहे हैं इंतज़ार..
उठ जाओ.. और करो उनसे भी बस थोडा सा प्यार..

उलझे रहे कल-आज और कल के चक्कर में..
चलो आज मत फूंको एक भी ciggarete..
फूँक दो बुरी आदतों को..
और आज रसगुल्लों पर टपकाओ लार..
उन्हें भी दो बस थोडा सा प्यार..

आज थोडा सा जल्दी उठकर.. मंदिर चले जाओ..
कुछ देर बैठ जाओ..
और मत खरीदो पाव-दो पाव पेड़े..
मगर लेलो अगर कोई श्रध्हा से देदे..
सह लो थोड़ी सुबह की हवा की मार..
देदो भाई.. उन्हें भी बस थोडा सा प्यार..

मत बांधो खुद को आज लय-ताल में..
लिख दो कुछ भी अनाप-शनाप..
जिसे जो समझना हो.. समझे वो आप..
मत करो दुसरे के intellect पे उपकार..
दे दो थोडा खुद को भी प्यार..

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