ना मैं इस ना उस पार का ,
मैं तो माँझी हूँ मझधार का .
डूबा नहीं जीवन -जल तरंगों में मैं ,
ना जीत की खुशी ना गम मुझे हार का ।
मैं तो माँझी हूँ मँझधार का
है मुझे जीवन -जल प्रिय
चाहे हो नद का या हो पारावार का
ना महलों की शोभा है ना सरोज की शान है
मेरे हाथ लगा है केवल ध्वनित सुख कागार का .
मैं तो माँझी हूँ मँझधार का
ना दुखाधिक्य की शुष्क हवा
ना सुखाधिक्य के ज्वार सा ..
विद्यमान है सत्य-समाहित इनमे
मेरे जीवन आधार का ..
मैं तो माँझी हूँ मँझधार का
मुझमें बसा है कोई.. बन प्रेरणा किसी की ..
मैं तो हूँ केवल यथार्थ उस स्वप्न साकार का .
मुझमें क्षितिज का स्वप्न है.. मुझमें समंदर धार का ..
मैं स्वप्नदर्शी हूँ व्योम-तट के मेरे स्वप्न संसार का ..
मैं तो माँझी हूँ मँझधार का ..
2 comments:
u are awsome...
and ur poems are gr8..
i loved ths 1 specially!!!
Thank you Kunal..
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