चलो लेता हूँ नींद मैं भी..
देखना और सीखना..फर्क करना..
मति की ढ़ेरी पर..
बैठकर.. सोचकर..और संभलकर ज़बान की लम्बी छलांग को..
कुछ कहना.. आदतों में जो ना बंधा हो..बहुत कठिन है.. ह्रदय की संरंचना
नींद को तैयार है सम्बन्ध मधुर..स्वागत करो कुम्हारों की औलादों...!!आज माटी फिर कुचली जाएगी...
मन फिर से चाक पर सजेगा..
आगे तुम दे ही दोगे आकार...चलो लेता हूँ नींद मैं भी..
बिन देखे.. बिन सीखे.. बिन सोचे..
तुम्हारी कला क्या है??
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