Saturday, September 15, 2007

मौत के बाद..

आँखें खोंले... बंद किये..
फर्क क्या पड़ना है.
किसे ये सब पढना है.
सोच में सबकी परेशानियाँ है..
किसी को कर्मकांड का
किसी को मेहमानों का सोचना है..

और बाकियों को
अपने व्यस्त जीवन से
छुट्टी लेकर श्राद्ध में शरीक होना है..


तो भाई लाश का कौन सोचे..

और सोचे...
उसकी इच्छा क्या है..
मतलब क्या थी...
!!

हां... मैं भी busy,
तुम भी busy..
busy relatives भी...
आंसूं बहाने में...
!!
और हम उलझे उलझे
दुखी होने के बहाने में...

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