सोचकर ही सही
देती तो थी
तुम जवाब ..
और सवालों के
सलाखों के पीछे
जला-जला सा ..
खड़ा-खड़ा सा
मैं ही तो था |
खद्दर में लाया था
उम्मीदें लपेटकर ..
सत्याग्रह से inspire होकर ...
बहुत देर रुका भी तो रहा था ..
बहुत कुछ हल्का-फुल्का
झेला भी तो सही
पर तुम देखती ही नहीं थी ..
और कोशिश भी तो नहीं की
कभी तुमने
...
बदशक्ल भी नहीं हूँ ...
और नकारा भी नहीं
मैं rejection की वजह
समझ सकता नहीं ..
जो मैं सोचता रहा हूँ ..
वो ग़लत हो जाए ..
तो बढ़िया है
थोड़ा अब भी पसंद करता हूँ ..।
उस एक ऊपर वाले को
जो कहानियाँ बुनता रहता है
तुम्हे पाने की कोशिश में
ज़बान की
सारी खारिश मिटा चुका हूँ ..
तो कैसे कहूं .... तो कैसे बकूं ..
कि हर रात
दिल से खून निकलता है ..
हर सुबह ..
गर्दन अकडी रहती है ..
मैं बीमार रहने लगा हूँ ..
थोड़े आँसू टपका दो मेरे लिए..
रहने दो पर ..
परेशानी और बढ़ जायेगी ..
भीख नहीं चाहिए ..
और फ़िर
तुम भी तो गरीब हो जाओगी
पर फ़िर भी
बाँट तो सकते ही हैं हम आपस में
प्यार .. रूतबा...
और इज्ज़त ..
सिर्फ़ इज्ज़त करें
तो भी काम चल चलेगा ...!!!
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