Saturday, September 15, 2007

एक बार को सोचो तो सही

थोड़े से पागल.. हठीले भी..
आँखें ये गीली-गीली भी..
फिर कल तुमने इनकार कर दिया..
और ये एक और बार..

टूटा है मेरा दिल...
फिर रात भर सोचता रहा..
माफ़ी मांग लूं तुमसे..

और फिर से कह दूं..
हम अच्छे दोस्त तो बने रह ही सकते हैं...
जबके मैं भी जानता हूँ
की हम कभी भी सिर्फ अच्छे दोस्त नहीं बने रह सकते..
प्यार करता हूँ तुमसे... कितनी बार समझाऊँ ..
मेरी हंसी को मज़ाक में मत लो..
बहुत आहें हैं इनमें..
डरता हूँ कहीं बद्दुवायें ना देने लगे..
तुम्हे और मेरे भरोसे को..
फिर सुबह धीरे धीरे संभल जाता हूँ..
कहता हूँ खुद से ही..
एक बार को सोचो तो सही...

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